थांवला से चारभुजा पैदल यात्रा का इतिहास

थांवला से चारभुजा पैदल यात्रा का इतिहास :-

वेसे तो थांवला से चारभुजा जाने की पैदल यात्रा  का इतिहास कोई खास पुराना नहीं है इस पैदल यात्रा की शुरुआत लगभग आज से 15 वर्ष पूर्व (लगभग 2004 ) से  शुरूहुई थी | जिसमे प्रथम पैदल यात्रा में श्रद्धालुओ की संख्या केवल 6 थी | पर जैसे-जैसे समय बितता गया पैदल जाने वाले श्रद्धालुओ की संख्या में बढोतरी होती गई और अब  इस पैदल यात्रा में जाने वाले लोगो की संख्या ओसतम 30 हो चुकी है | यह यात्रा भाद्रपद  में देवजुलनी एकादसी से चार दिन पहले थांवला से सुरु होती है

पैदल यात्रा 2004:- 

आज से करीबन 15 वर्ष पूर्व 2004 में पैदल यात्रा का सुभारम्भ हुआ |जिसकी शुरुआत लगभग 6 यात्रियों द्वारा की गई  इस यात्रा की शुरुआत भंद्रपत एकादशी के चार दिन पहले से होती है | और यह संध तिन दिन लगातार पैदल यात्रा करने के बाद चारभुजा पहुचता है इनका मुख्य उधेइय  भंद्रपत माह को शुक्ल पक्ष एकादशी को होने वाली रेवाड़ी में चारभुजा नाथ जी की स्वर्ण मूर्ति का दर्शन करना व रेवाड़ी का हिस्सा बनना है |

देव झूलनी एकादशी एक महापर्व :-

चारभुजा मंदिर मेवाड़ क्षेत्र के चारधामों में से एक है | यह मंदिर राजसमन्द जिले के गरबोर शहर में स्थित है | 
इस मंदिर की स्थापना आज से लगभग 600 साल पहले भंद्रपत माह की एकादशी को राजा  महाराणा प्रताप के
पूर्वज श्री गंगा देव द्वारा की गई | भाद्रपद में आने वालो शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव झूलनी ग्यारस एकादशी
भी कहा जाता है | इस एकादशी को भगवान श्री चारभुजा नाथ की राम रेवाड़ी तथा उनका महा स्नान होता है |
जिसमे लाखो की संख्या में श्रध्दालु दर्शन हेतु पहुचते है | यह मेला मेवाड़ वाशियों के लिए विशाल पर्व है |